केंद्र सरकार ने सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए यूपीएससी से हाल में प्रकाशित लैटरल एंट्री द्वारा प्रशासनिक सेवाओं के नवीनतम विज्ञापन को रद्द करने के लिए कहा

संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संयुक्त सचिव, निदेशक, उप सचिव स्तर के 45 पदों के लिए लैटरल एंट्री से सरकारी सेवा में आवेदन के लिए विज्ञापन जारी किया गया था ।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को यूपीएससी के अध्यक्ष प्रीती सुदन को पत्र लिखकर विज्ञापन वापस लेने और भारती की योजना को रद्द करने को कहा है।
जितेंद्र सिंह का यह पत्र विपक्ष के द्वारा केंद्र के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और एनडीए के सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी की घोषणा के बाद आया है कि अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए निर्धारित कोटे के बिना सरकारी सेवाओं में प्रवेश में प्रवेश अन्यायपूर्ण और स्वीकार है।
डॉक्टर सिंह ने अपने पत्र में बताया कि 2005 में यूपीए सरकार के तहत स्थापित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग और छठे वेतन आयोग 2013 की सिफारिश के अनुसार इन भारतीयों के विज्ञापन को प्रकाशित किया गया था नरेंद्र मोदी सरकार का मानना है कि लैटरल एंट्री की प्रक्रिया हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के अनुसार और पारदर्शी होना चाहिए
रोजगार में आरक्षण अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए सामाजिक न्याय और समानता के लिए अत्यंत आवश्यक है । अनुसूचित जाति और जनजाति और पिछड़ी जातियों पर ऐतिहासिक अन्याय और समावेश को बढ़ावा देने के लिए रोजगार में आरक्षण के प्रावधानों को लागू करना अत्यन्त आवश्यक है ।
पत्र में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है की नियुक्तियों के विज्ञापन में आरक्षण पहलू के प्रावधान मौजूद नहीं थे और उनकी समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है। इस कारण वर्तमान विज्ञापनों को रद्द किया जाना चाहिए।
सरकार द्वारा लैटरल भर्ती की प्रक्रिया से पीछे हटने के पीछे विपक्ष और एनडीए सहयोगी की भूमिका स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष के अभियान से भाजपा को एक सबक मिला है ।भाजपा सांसदों के गैर जिम्मेदाराना बयानों की तीखी आलोचना की गई थी ।भाजपा भारतीय संविधान में मौलिक परिवर्तन करने के लिए 400 पार का भारी बहुमत चाहती थी खासकर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण के संबंध में संशोधन करना चाहती थी। लोकतांत्रिक अधिकारों के साथ खिलवाड़ किसी भी सरकार के लिए उचित और न्याय संगत नहीं है।
ने सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए यूपीएससी से हाल में प्रकाशित लैटरल एंट्री द्वारा प्रशासनिक सेवाओं के नवीनतम विज्ञापन को रद्द करने के लिए कहा
संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संयुक्त सचिव, निदेशक, उप सचिव स्तर के 45 पदों के लिए लैटरल एंट्री से सरकारी सेवा में आवेदन के लिए विज्ञापन जारी किया गया था ।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को यूपीएससी के अध्यक्ष प्रीती सुदन को पत्र लिखकर विज्ञापन वापस लेने और भारती की योजना को रद्द करने को कहा है।
जितेंद्र सिंह का यह पत्र विपक्ष के द्वारा केंद्र के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और एनडीए के सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी की घोषणा के बाद आया है कि अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए निर्धारित कोटे के बिना सरकारी सेवाओं में प्रवेश में प्रवेश अन्यायपूर्ण और स्वीकार है।
डॉक्टर सिंह ने अपने पत्र में बताया कि 2005 में यूपीए सरकार के तहत स्थापित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग और छठे वेतन आयोग 2013 की सिफारिश के अनुसार इन भारतीयों के विज्ञापन को प्रकाशित किया गया था नरेंद्र मोदी सरकार का मानना है कि लैटरल एंट्री की प्रक्रिया हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के अनुसार और पारदर्शी होना चाहिए
रोजगार में आरक्षण अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए सामाजिक न्याय और समानता के लिए अत्यंत आवश्यक है । अनुसूचित जाति और जनजाति और पिछड़ी जातियों पर ऐतिहासिक अन्याय और समावेश को बढ़ावा देने के लिए रोजगार में आरक्षण के प्रावधानों को लागू करना अत्यन्त आवश्यक है ।
पत्र में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है की नियुक्तियों के विज्ञापन में आरक्षण पहलू के प्रावधान मौजूद नहीं थे और उनकी समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है। इस कारण वर्तमान विज्ञापनों को रद्द किया जाना चाहिए।
सरकार द्वारा लैटरल भर्ती की प्रक्रिया से पीछे हटने के पीछे विपक्ष और एनडीए सहयोगी की भूमिका स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष के अभियान से भाजपा को एक सबक मिला है ।भाजपा सांसदों के गैर जिम्मेदाराना बयानों की तीखी आलोचना की गई थी ।भाजपा भारतीय संविधान में मौलिक परिवर्तन करने के लिए 400 पार का भारी बहुमत चाहती थी खासकर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण के संबंध में संशोधन करना चाहती थी। लोकतांत्रिक अधिकारों के साथ खिलवाड़ किसी भी सरकार के लिए उचित और न्याय संगत नहीं है।